बांटता है आदमी
बांटता है आदमी
आदमी स्वभावतः
बांटने वाला ही है
बांटता है वह
अपने स्वभावानुरूप
अपनी प्रवृत्ति अनुरूप
बांटता वही है
जो है उसके पास
जिसके पास नफरत है
वह बांटता है नफरत
जिसके पास प्रेम है
वह बांटता है प्रेम
क्रोध वाला क्रोध
मुस्कान वाला मुस्कान
कस्तूरी वाला महक
बांटता जरूर है
दुख बंटाने से
आधा हो जाता है
खुशी बांटने से
दुगनी हो जाती है
-विनोद सिल्ला