बाँसुरी
विषय – बाँसुरी!
विधा – विधाता छंद !
विधान – २८ मात्रा, १४- १४ मात्रा पर यति,चार चरण, दो दो चरण समतुकांत, अंत गुरु गुरु !
( १,८,१५ व २२ वी मात्रा लघु)
1222 1222 1222 1222
बनी है बाँसुरी राधा , लबों में कृष्ण ने चूमी!
बहीं जो मोहिनी धारा, सुरों के आँच में झूमी!
बसी हैं कंठ में मीठी, सुधा वीणा तरंगों की!
करें जो नृत्य कान्हा हैं,बनीं संगी उमंगों की!!१
धरें है बाँसुरी हाथों, लगें उन्हें निशानी-सी !
यहीं हैं साधना देखों, बसी राधा सयानी-सी !
जुड़े है प्रेम से दोनों, तभी होतीं कहानी है!
रहें हैं पूर्ण प्रेमी वे , कथा दिव्या पुरानी है !!२
अधूरापन बड़ा लगता , नहीं जब कृष्ण होते हैं!
सदा वे साधना में भी , अलौकिक राग बोते हैं!
रहीं हैं कृष्ण की शोभा, बजी जब बाँसुरी राधा!
सुरों की माधुरी में हीं , प्रिया ने प्रेम में साधा !!३
बने हो चेतना मेरी , जहाँ देखूँ वहीं प्यारे!
घिरी कालीस अंधेरी, बनें हो रोशनी तारें !
उदासी में सुना तुम्हें , सुरीली बाँसुरी बोले!
जुड़े नित प्राण संगी हो, निहारा प्रीत में डोले!!४
छिपे हो प्राण में मेरे ,कहाँ खोजूं सदा हारा !
बसे हो बाँसुरी में तुम, घने आँसू बहे धारा !
सदा ही रश्मि पाई है , जगी है साधना तेरी !
भुला हूँ कैंदखाना भी, बढ़ी है कामना तेरी !!५
छगन लाल गर्ग विज्ञ!