बाँध कर लाये थे ज़ुल्फ़ों में वो काली रात भी
थी जुबां खामोश पर वो कर रहे थे बात भी
खोल आँखों ने दिये मन के सभी जज्बात भी
अश्कों ने फिर प्यार का इजहार कुछ ऐसे किया
ज्यों सुनहरी धूप में होने लगे बरसात भी
नूर उनके रूप का उस चाँद से कुछ कम न था
बाँध कर लाए थे ज़ुल्फों में वो काली रात भी
मुस्कुराने हम लगे जो उनका चेहरा देखकर
वो ये समझे ठीक हैं अपने बुरे हालात भी
हाथ में ऐसे हमारे हाथ उनका आ गया
मिल गई किस्मत से हमको प्यार की सौगात भी
ले रहे ‘मासूम’ लब से थे दवा का काम वो
पर नज़र के नश्तरो से कर रहे थे घात भी
मोनिका “मासूम”???