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3 Sep 2020 · 1 min read

बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या

बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या
अपने गांव घर से आरहे हो क्या

बहोत तिजारती लहजे में गुफ्तगुं कर रहे हो
किसी शहर से आरहे हो क्या

तुम्हारा अंदाज भी उसके जैसा है
तुम भी उधर से आरहे हो क्या

लुटे हूए सुल्तान जैसी हालत लग रही है तुम्हारी
क्या , दफ्तर से आरहे हो क्या

लगता है सफर लंबा भी है जरुरी भी है तनहा भी है
कब से , दोपहर से आरहे हो क्या

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