बहूरानी
अरे नही…ये क्या कर रही हो ? सुमित्रा के विवाह को पंद्रह दिन हो चुके थे घर मेहमानों से खाली हो चुका था , उसने सोचा आज मम्मी ( सासू जी ) के कमरे में चल कर उनके पैर दबा आती हूँ इतने दिनों से उनको लगातार काम करते देख रही थी…बहुत सौम्य और मधुर भाषी महिला के रूप में उनका व्यक्तित्व दिखाई दे रहा था उसको । कमरे का दरवाज़ा खटखटाया तो अंदर से मम्मी की आवाज़ आई ” अरे कौन है भाई जिसको मेरे कमरे को खटखखटाने की ज़रूरत पड़ गई ? ” सुमित्रा को सामने देख मुस्कुरा कर बोलीं ” अच्छा तो ” बहुरानी ” तुम हो ” आओ – आओ सुमित्रा उनके बिस्तर पर पैरों की तरफ बैठ गई और बैठते ही पैर दबाने के लिए हाथ पैरों पर लगा दिये तभी सासू जी उसका हाथ हटाते हुये बोल पड़ीं ” अरे नही…ये क्या कर रही हो ? सुमित्रा डर गई ये देख सासू जी बोलीं ” देखो ” बहुरानी ” तुम मेरी बहु और मैं तुम्हारी सास और हमेशा यही रिश्ता रहेगा ” एक बात बताओ मुझे क्या माँ – बेटी बनना ज़रूरी है ? हम सास – बहु बन कर प्रेम से नही रह सकते ? और हाँ ये जो तुम मेरे पैर दबाना चाह रही हो इसकी इजाजत तो मैं कत्तई नही दे सकती मैने कुछ काम बाँट रखे हैं और ये काम मेरे बेटों का है…ये जो बहु के साथ रानी जोड़ा है सिर्फ बुलाने के लिए नही उस शब्द का सही अर्थ सार्थक करने के लिए , अब तुम जाओ और अपने देवर को मेरे कमरे में भेज देना ये कह कर सासू जी ने सुमित्रा का माथा चूम लिया ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )