बहु और बेटी
न समझो मुझको पराया,मुझे अपना बनाकर देखो,
माना कि बहु हूँ तुम्हारी,पर बेटी समझकर कर देखो,
बचपन से सुना था मैंने,मैं धन हूँ एक पराया,
जब कन्यादान हुआ मेरा,तब मुझको समझ में आया,
ससुराल है घर मेरा,और मायका हुआ पराया,
ख़ुशी ख़ुशी मैंने, घर में अपना कदम बढ़ाया,
पर यहाँ भी मुझको,सबने समझ लिया पराया,
न समझो मुझको पराया,मुझे अपना बनाकर देखो,
माना कि बहु हूँ तुम्हारी,पर बेटी समझकर कर देखो।
किया फर्क बहु बेटी में आपने,फ़िर सरेआम इल्जाम दिया,
बेटा हैं बहु के वश में,बेटी दामाद ने हमारा साथ दिया,
बेटे दर्द देतें हैं, पर बेटी ने मरहम का काम किया,
दिल से रिश्ता है बेटी का,इस बात को आपने मान दिया,
आपके दिल ने बार बार क्यों बहु को अस्वीकार किया,
न समझो मुझको पराया,मुझे अपना बनाकर देखो,
माना कि बहु हूँ तुम्हारी,पर बेटी समझकर कर देखो,
आपकी बेटी भी बहु है किसी और की,इस बात को नजरअंदाज किया,
जब बुलाओ तो दौड़ कर आती है बेटी,इसका अभिमान किया,
एक बार दिल से अपना लो बहु को,वो भी दौड़ कर आएंगी,
आप बना लो बहु को बेटी,बहु को भी माँ मिल जाएगी,
इस प्यारे रिश्ते को फिर नज़र किसी की न लग पाएगी,
न समझो मुझको पराया,मुझे अपना बनाकर देखो,
माना कि बहु हूँ तुम्हारी,पर बेटी समझकर कर देखो,
गुजारिश यही है कि बेटी को भी बहु के फर्ज सिखाकर भेजो,
औऱ परायी बेटी को बहु न समझकर, बेटी बनाकर देखो,
फिर बेटा भी अपना होगा और बहु भी अपनी होगी,
मिट जाएगा फर्क बहु बेटी का,एक बार आजमा कर देखो,
बस एक बार प्यार से यह रीति निभाकर देखो,
न समझो मुझको पराया,मुझे अपना बनाकर देखो,
माना कि बहु हूँ तुम्हारी,पर बेटी समझकर कर देखो।।
By:Dr Swati Gupta