बहुत
जीवन मे मैंने जब भी कीं मनमानियां बहुत ।
माँ बाप ने कीं माफ मेरी ग़लतियाँ बहुत।।
अब क्या बताऊँ यार जबानी का दौर वो।
ख्वाबो में रोज आती थीं शहजादियाँ बहुत।।
शायद उधर भी प्रेम की ही आग थी लगी।
उनसे मिली सुलग उठीं चिंगारियां बहुत
वो आज बेटियों पे कसिदे जो पढ़ रहा।
मारी थी उसने कोख में ही बेटियां बहुत।।
अब भूख से बेहाल हुआ धरती पुत्र भी।
इस साल भी फसल में लगीं इल्लियाँ बहुत ।।
काँपा जरा न हाथ कहीं लूटी आबरू।
जिस हाथ में बँधी हुई थीं राखियाँ बहुत।।
झूठे अहम में मिट गया नामो निशान तक।
देखीं हैं हमने ऐसी जली रस्सियाँ बहुत
लफ्जों में जबसे तुमको उतारा है हू ब हू।
महफ़िल में मुझको मिलने लगीं तालियाँ बहुत।।
इस उम्र के पड़ाव पे सीरत सँवार ले
सूरत पे ज्योति आने लगीं झुर्रियाँ बहुत।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव