बहुत हो गया कोविद जी अब तो जाओ
बहुत हो गया कोविद जी अब तो जाओ।
जाओ भी अब हठधर्मी मत दिखलाओ।।
कुछ दिन के मेहमान सरीखे आ जाते।
खाते पीते कुछ दिन और चले जाते।
लेकिन तुम तो तम्बू गाढ़े बैठे हो।
पता नहीं तुम किस गुमान में ऐंठे हो।
सारे हैं हल्कान, तरस कुछ तो खाओ।
बहुत हो गया कोविद जी अब तो जाओ ।
डेंगू और चिकनगुनिया भी आते हैं।
किंतु शराफत वह भरपूर दिखाते हैं।
थोड़े दिन मेहमाननवाजी करके वह।
फिर चुपचाप विदाई लेकर जाते हैं।
शिष्टाचार उन्हीं से आप सीख आओ।
बहुत हो गया कोविद जी अब तो जाओ
राजी से यदि नहीं गये, पछताओगे।
वैक्सीन से आप खदेड़े जाओगे।।
भारतवासी जिसके पीछे पड़ते हैं।
उसकी जड़ तक जाकर मट्ठा भरते हैं।
बुरे फँस गये भारत में अब पछताओ।
बहुत हो गया कोविद जी अब तो जाओ ।।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।