बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
हृदय दीप में नेह बाती जलाओ
मिसाइल बमों से बरसती है लपटें
धुआं और अंधेरा सघन हो रहा है
मासूम लोगों की लाशें बिछी हैं
धरा की दशा देख नभ रो रहा है
घृणा और उन्माद चारों तरफ़ है
दिया क्या करेगा कोई सूरज उगाओ
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
हृदय दीप में नेह बाती जलाओ
मनुजता मिटेगी तो फिर क्या बचेगा
विधाता न फिर से यह दुनिया रचेगा
इसी मृत्तिका में है मिलना सभी को
मगर मृत्यु का नाच किसको जंचेगा
दहन शक्ति से मत मिटाओ मनुजता
दहन शक्ति है तो अंधेरा मिटाओ
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
हृदय दीप में नेह बाती जलाओ
नये इन्द्रधनुषों से चोटिल हैं बादल
कड़ी धूप से है हरी छांव घायल
स्वयं को महत्तर बनाने की ज़िद में
कहीं राष्ट्र नायक न हो जाएं पागल
अमरता मिली है न अमृत मिलेगा
अभी वक़्त है इस धरा को बचाओ
बहुत ही घना है अंधेरा घृणा का
हृदय दीप में नेह बाती जलाओ
— शिवकुमार बिलगरामी