बहुत सुखद सा लगता है
बहुत सुखद सा लगता है,
जब बिना बात ही गप्पें हों
जब अनायास ही महफिल हो
जब दोस्त पुराने संग संग हों
जब अपरिमित सी फुरसत हो
जब बिसरी यादें ताजा हों
जब हँसी ठिठोली निश्छल हो ।
बहुत सुखद सा लगता है,
जब बेमौसम की रिमझिम हो
जब मन सावन हरियाली हो
जब दिल से दिल की बातें हों
जब साथ मेरे मेरा हमदम हो
जब उसकी मोहक वाणी हो
जब प्यार भरी वो नज़रें हों ।
बहुत सुखद सा लगता है,
जब रिश्तों की बेलें ताजा हों
जब विश्वास जड़ें गहनतम हों
जब बच्चों का बचपन खिलता हो
जब सम्मान बड़ों का समुचित हो
जब अतिथि का अभिनंदन हो
जब मुस्कान लबों पर सच्ची हो ।
बहुत सुखद सा लगता है,
जब मन सुन्दर देदीप्यमान हो
जब क्षमा प्रेम सुन्दर विचार हों
जब सबकी सबसे अनुभूति हो
जब कड़वाहट का नाम न हो
जब स्वर कोमल सा मधुरिम हो
जब सुन्दर सपनों सा ये जग हो ।
डॉ सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश