*बहुत सुंदर इमारत है, मगर हमको न भाती है (हिंदी गजल)*
बहुत सुंदर इमारत है, मगर हमको न भाती है (हिंदी गजल)
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1)
बहुत सुंदर इमारत है, मगर हमको न भाती है
गुलामी की निशानी है, गुलामी याद आती है
2)
हमें बैसाखियॉं देकर, निकाली दुश्मनी ऐसी
सहारे से सड़क पर अब, हमें दिनभर चलाती है
3)
कहीं हम शक्तिशाली बन, उठाने लग न जाऍं सिर
तिरंगे के विरोधी को, यही चिंता सताती है
4)
कभी भी वोट देना तो, हमेशा ध्यान में रखना
सही वाले बटन से ही, बुराई मात खाती है
5)
गृहस्थी स्वर्ग समझो वह, जहॉं झगड़े नहीं होते
गृहस्थी है तपश्चर्या, हमें प्रभु से मिलाती है
6)
सभी को डर बना रहता, तुम्हारा पॉंच वर्षों तक
तुम्हारे वोट की ताकत, तुम्हें राजा बनाती है
7)
शहर से दूर ई-रिक्शा, जहॉं पर जा न पाती है
हमेशा कार वालों को,वहीं महफिल लुभाती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451