बहुत बुरा हाल घर का
**बहुत बुरा हाल घर का**
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बहुत बुरा हाल है घर का,
खाली पड़ा हाल है घर का।
हैं तोड़ते नींव आलय की,
नहीं बचा माल है घर का।
क्यों रोकते राह राही की,
नहीं रहा ढाल है घर का।
करे भला कौन कोशिश सी,
लगा हुआ जाल है घर का।
दिखे जहां शून्य मनसीरत,
किसे लगा ख्याल है घर का।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)