बहुत दूर
कविता
बहुत दूर
*अनिल शूर आज़ाद
कल
जब/खूब बारिश
होकर चुकी थी
तब मैं
फिर तुम्हारी
गली मेँ/आया था
सोचा था/मौसम की
खूबसूरती को/देखने
तुम जरूर
अपनी/खिड़की पर
आई होओगी
पर तुम
नही आई
तब/याद आया
पराई होकर
इस घर से तो/तुम
विदा हो/ चुकी हो
और
मुझसे भी तो
चली गई हो
बहुत दूर…
(रचनाकाल : वर्ष 1987)