दीनानाथ
विधा-बरवै छन्द
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बहुत दीन अनाथ हूँ, दीनानाथ।
सिर पर अब रख दो प्रभु ,अपना हाथ।।
दुनिया रंग बिरंगी,मिले न मीत।
पैसे के सब संगी,जग का रीत।।
आज शरण में आई, लेकर आस।
तेरे दर्शन की है,मन में प्यास।।
कष्ट सभी हर लेते, प्रभु जी आप।
हरो आज मेरा भी ,उर संताप।।
जो भी तेरा नित दिन, करता जाप।
तन-मन निर्मल होता, मिटता पाप।।
निर्धन, निर्बल हम हैं, भक्त अज्ञान।
तेरे दर पर आये, रखना मान।।
महिमा सुनकर आया, तेरे द्वार।
अब तो दाता सुन लो, दीन पुकार।।
मेरी झोली भर दो,अब सरकार।
कर जोड़ करूँ विनती ,बारंबार।।
पूजन, वंदना करो, प्रभु स्वीकार।
हृदय लगा लो हमको, कर उपकार।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली