बहुत घुटी घुटी सी रहती हो तुम
बहुत घुटी घुटी सी रहती हो तुम ,बस खुलती नही हो तुम ,
खुलने के लिए जानती हो फिर से तुम्हे बहुत साल पीछे जाना होगा
,और फिर वही से चलना होगा ,जहां से कंधों पर बस्ता उठाकर तुमने स्कूल जाना शुरू किया था
, उस जेहन को बदलकर फिर कोई नया जेहन लगवाना होगा तुम्हे ,
फिर इस सबके बाद जब ,तुम खुलकर, खिलखिलाकर ,
ठहाका लगाकर किसी बात पर हँसोगी ,तब पहचानोगी तुम क्या हो ।