बहुत कुछ बोलता हूँ ।।
लक्ष्य से भटकी हुई
एक नाव सा ।
पतझड़ी वन में,
मैं तरुवर ढ़ाक का
शांत बेसुध, सा खड़ा हूँ।
जिद्द जड़ों में आज भी है,
शेष मेरे ।
पथरीले भूगर्भ में
जल को खोजता हुँ ।
आग दिल में और
आशाएं समेटे
मौसमों की मार से
मैं खेलता हूँ।
पतझड़ी वन की
दहकती आग हूँ ।
उजड़ा हुआ हूँ ,
फिर भी मैं आबाद हूँ।
लगता हूँ ; सूखा ,नीरस
पर जिंदा हूँ ।
बरखा जो छू ले मुझे
तो डोलता हूँ।
जो थके है और टूटे ;
कभी संघर्ष में
अपने तराज़ू से मैं,
उनको तोलता हूँ।
मूक हूँ ; वन में मग़र
समझो………….??
तो
बहुत कुछ बोलता हूँ ।।
Sk soni ?