बहुत कुछ पार कर जाते हैं
बहुत कुछ
पार कर
जाते हैं हम
उम्र के लंबे
पड़ाव
वक़्त की पिघलती
कतारें
ईर्ष्या, क्रोध,द्वेष
के घने, स्याह
जंगल
संवेदनाओं की
शून्यता
दंभ के
ऊँचे दुर्गम पहाड़
मर्यादाओं की हदें
रक्त रंजित
श्मशान की चौखटें
चाँद को
छुए जाने के
कानून
नहीं
पार
कर पाते हैं हम
रिश्तों के
चारो ओर
खिंचे घेरे
अहमं की
मज़बूत दीवारें
बेवस आँखों
की गहराई
हृदय के बीच
खुदी गहरी
खाई
गालों पर ठहरे
खारे समंदर
मन की
सूनी देहरी
चेहरों पर
तज़ुर्बों की
खिचीं रेखाएं
मज़हबों की
सरहदें
और
ख़ुश्क ठोस बर्फ सी
प्रेम की चट्टानें,,,