बहुत कुछ खो कर तुझ में खोया हूँ
बहुत कुछ खो कर तुझ में खोया हूँ
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बहुत कुछ खो कर ही तुझ में खोया हूँ,
तेरी यादों में प्रियवर दिन-रात रोया हूँ।
हुस्न का जादू हमपर हद पार छाया है,
ख्वाबों में देखूं मैं पल-भर न सोया हूँ।
नैनों से बहता है सागर बन कर मोती,
आँसुओं से हर-पल खुद को धोया हूँ।
ताने दुनिया भर के सहकर हारा दम,
गम का भारी बोझा खुद ही ढोया हूँ।
मनसीरत जोगी बन कर ढूंढे नभ-तल,
बीज प्रेम का तन-मन आलम बोया हूँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)