बहुत अब हो चुका
बहुत अब हो चुका
(गीतिका)
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बहुत अब हो चुका खिलवाड़ धरती भी बचानी है।
प्रदूषित हो गया देखो धरा नभ और पानी है।
बहुत ऊंचे उड़े हो अब धरातल पर उतर आओ।
यहां भगवान के आगे नजर सबको झुकानी है।
सघन हैं मेघ खतरों के चलेगा काम कैसे अब।
बढ़ें आगे सभी मिलकर बहुत हिम्मत दिखानी है।
भयावह हो चुकी हालत पड़ा अस्तित्व खतरे में।
अनेकों प्राणियों की आज मिटने को निशानी है।
लगे अंकुश जरूरत से अधिक पाने की इच्छा पर।
कड़ाई से शपथ यह आज हम सबको निभानी है।
करें चिंता सभी की और हो सुख से भरा जीवन।
व्यवस्था जिन्दगी में इस तरह हमको बनानी है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २०/०८/२०२१