बहुत अच्छी लगने लगी हो
बहुत अच्छी लगने लगी हो
दिलो दिमाग पर
छा गयी हो।
चाँदनी ओढ़कर
बर्फ की परी की तरह
मुस्कराकर तुम मुख़ातिब
आ गयी हो।
घटाओं की चिलमन से
चाँद झाँकता है।
तुम्हारी दीद को
तकदीर आँकता है।
बहारों के नज़ारे
फीके पड़ गए हैं।
निगाहों के झुंड सब
तुम पर गड़ गए हैं।
बहारों का यह कौन सा
रूप लेकर
बिंदास तुम नज़ारों में
आ गयी हो।
बहुत अच्छी लगने लगी हो
दिलो दिमाग पर
छा गयी हो।
संजय नारायण