बहुजन साहित्य
लानत है!
तुम शंबूक की शहादत और
एकलव्य की कुर्बानी भूल गए!
तुम ज़ुल्म और नाइंसाफी की
हर एक निशानी भूल गए!!
पिछले पांच हजार साल में
तुम्हारे पूरखों ने लिखी थी!
जो अपने आंसू और ख़ून से
तुम वही कहानी भूल गए!!
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