बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसद्दस मुज़ाफ़
बहर-ए-ज़मज़मा मुतदारिक मुसद्दस मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
222222222222
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भरी महफिल में मै सादगी को ढूढ़ता रहा
तुझको पाकर भी जिंदगी को ढूढ़ता रहा
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सब लोग व्यस्त थे सूरज की जुगाड़ में
दिया तले मै ही रौशनी को ढूढ़ता रहा
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जिस फूल की कभी वो खुशबू चुरा गई
तमाम उम्र उसी तितली को ढूढ़ता रहा
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ना जाने कोई मुराद कब पूरी होती
मैं ख्वाब में बस यूँ ख़ुशी को ढूढ़ता रहा
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मेरे भीतर मिला नहीं सख्त आदमी
एक अरसे तक उस कमी को ढूढ़ता रहा
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़
6.5.24