बहरूपिया मन
(१२२२*४)
रहे ना साथ जब छाया, चले तब संग सूनापन।
कुतर्कों की हृदय में बस करे घण्टी झनन-झन-झन।
लगे जब प्रश्न चिंतन के सु-द्वन्दों का मुकुट गढ़ने,
तभी तो बैठ ही जाता विचारों को पकड़कर मन।
उठाकर आप पर उँगली गगन ही से पटक देगा,
हृदय का हाथ धरकर वह फिराएगा विजन-से-वन।
वही जब शांत मानस हो- विचारों की बहे गंगा,
पुलककर नाचता उसमें चपलतम मीन-चंचल-बन।
-सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’