बहन से आख़िरी बात
कविता :- 17(50)
नमन ? :-
दिनांक :- 10/09/2020
दिवस :- वृहस्पतिवार
विधा :- कहानी
शीर्षक :- बहन से आख़िरी बात
कोरोना काल से दस साल पहले दो हज़ार दस , कार्तिक मास
काली पूजा, छठ पूजा के बाद की बात है , गंगाराम, तोताराम, अंतिमराम तीनों भाई के बाद तीन पर से एक फ्री बहन तनु की बात करते हैं, रोशन , राहुल, राजन और तनु भाई बहनों में वह प्रेम था कि क्या वर्णन करूँ , मिथिलांचल में मैथिली भाषा में कहें जाते है, ठेठर बेटा आग लगाबेए, तेतर बेटी राज लगाबेए , मतलब तीन बेटियां के बाद जो बेटा होता है वह राज्य को नष्ट कर देता है, और तीन बेटों के बाद जो बेटी होती है वह राज्य को लगाती है, 20 नवम्बर 2003 गुरुवार को जन्मी तनु राजकीय प्राथमिक विद्यालय झोंझी के दूसरी कक्षा के छात्रा अपने जन्मदिन और 20 नवंबर 1999 को जन्मा मझला भाई राहुल , दोनों के वर्षगांठ एक ही दिन पड़ता , उससे पहले निर्मल दीदी की बेटी गुड़िया बहन की जन्मदिन चौदह नवंबर चाचा नेहरू जी के बाल दिवस के दिन ही पड़ता , राजन का पाँच मई आनंद का 28 मई , रोशन तो एक अक्टूबर 1997 जन्मा पर वर्षगांठ एक अक्टूबर न 1999 के तेरह जून को ही हर वर्ष मनाते हैं, पर तनु बहन अपनी सातवीं वर्षगांठ मनाने से दो दिन पहले ही वृहस्पतिवार 18 नवंबर 2010 को ही दुनिया छोड़कर चली गई, यूं तो जॉन्डिस के शिकार से , अन्तिम वक्त माँ अपने गांव पचदही , राजनगर , रामपट्टी , कैथाही के भैरव स्थान भी गई, जहाँ माँ की हर एक मनोकामना पूरी हो जाती वहां के पुजारी बाबा भी बता दिए कि अब आपकी बेटी नहीं बच पायेगी, कोई नज़र लगा दिया है , धन्यवाद उस माँ की जो घर परिवार से ये बात छिपाते हुए अपनी संतान की इलाज़ करवाने में लग गई , उसके बावजूद भी तनु बहन नहीं बच पायी , और देवउठनी एकादशी के सुबह लगभग आठ बजे अन्तिम सांस लेते हुए चल पड़ी , उस वक्त गंगाराम राजकीय मध्य विद्यालय नरही में पढ़ता रहा , वह मिली मनीषा आठवीं , कंचन नौवीं , गंगाराम सातवीं कक्षा में एक ही साथ अपने अपने साईकिल से लोहा के अवधेश सर के न्यू एक्टिव कोचिंग सेंटर में सुबह को पढ़ने जाते , छठ पूजा के बाद जब बहन तनु की हालत बहुत ख़राब हो गई , रात के दो बजे से ही तड़पने लगी, भूख , भूख करती रही , जोंडिस होने के कारण दादी माँ चावल में पानी और नमक मिलाकर देती रही और वह खाती रही, कहती रही हमको और भूख लगा है , पानी पर से पानी पीती रहीं, बोलती ही रह गयी छठ पूजा के प्रसाद दो , पर तबीयत खराब होने के कारण उसे प्रसाद तक नहीं दिया गया, कुछ दिन पहले हुई भरदुतिया में निर्मल दीदी के बेटा मुकेश भईया , रूबी दीदी की ऋषि सब भाईयों के साथ गंगाराम भी प्रीति गुड़िया , खुशी बहन राजेश चाचा आंगन में और मुनचुन अमिषा, मिली मनीषा , नीषा मौसी व बहनों के साथ तो भरदुतिया पर्व मनाया पर अपनी बहन तनु अपने भाईयों के माथे पर तिलक नहीं कर पायी रही , जिसका कारण रहा लीवर कटाने उसे पिता साईकिल पर बैठकर सप्ता मधुबनी ले गया रहा , आते वक्त साईकिल के रिम में पांव फंसने के कारण कुछ ज़्यादा ही पांव कट गया रहा, जिसके चलते गंगाराम बहन तनु को साईकिल पर बैठाकर पैदल ही माँ पापा के साथ ले लोहा तक ले गया, गंगाराम को कोचिंग जाने का मन नहीं रहा, जिसके चलते वह बार बार बहन को जो तो कहता रहा मैथिली में नीक सऽ बैठ , मतलब ठीक से बैठों, शायद बहन जानती रही की अब तो हम रहेंगे ही नहीं , सब सुनती रही , जहां जहां मंदिर आते माँ बोलती बेटी हनुमान जी, काली जी को प्रणाम कर लो , वह बेचारी ज़ोर ज़बरदस्ती करती रही, कहा जाता है नीलकंठ के दर्शन से हर काम बन जाता फाटक नरही जाने की मोड़ के बाद परौल के तरफ ईंट भट्टा के तरफ माँ की नज़र उस नीलकंठ भगवान पर पड़े , फिर माँ बोली बेटी प्रणाम कर लो वह फिर प्रणाम कर ली शायद यह सफ़र उसका झोंझी गांव से अंतिम सफ़र रहा , गंगाराम बार बार कहता रहा कोचिंग का देरी हो जाएगा , इस तरह टोलवा , नहर पार करने के बाद लोहा के मुख्य सड़क पर जाने से पहले माँ बोली गंगाराम से तनु को पापा गोदी में ले लेते हैं और तुम कोचिंग चले जाओ ,गंगाराम भारी मन से बहन को उतार दिया और साईकिल चलाकर आगे बढ़ गया, कोचिंग जाने का मन तो रहा नहीं तो वह बलईन के रास्ते नहर से वह कुछ समय इधर उधर करके घर चला गया , वह स्थान बड़े पक्का के हो गए हैं पर याददाश्त आज भी है , जब गंगाराम उस स्थान से गुजरते है तो अपनी बहन की याद आ जाते हैं , जहाँ वह अपनी बहन से दूर हुए रहें , बेचारी न तो काली पूजा की मेला देखी और न ही छठ पूजा और देवउठनी एकादशी के प्रात: ही दुनिया छोड़कर चली गई, एकादशी के रात में फूस वाले घर में माँ काली भगवती के पास बड़े भाई गंगाराम अपनी बहन की रक्षा के लिए धूप अगरबत्ती जलाते रहे, माँ पूनम , पिता श्रीष्टु तनु के साथ अस्पताल में ही रहें , और दादी माँ और माँ एकादशी की व्रत रही , जिसके कारण लड्डु दीदी, के घर में ही बने खाना खाकर व्रत तोड़कर फूल देवी अपने पोती से मिलने मधुबनी गयी , दादी मधुबनी जैसे ही पहुंची , तब तक तनु , पिता और माँ के साथ लाश बनकर भगवान जी के जीप में आयी, जीप वाला ज़्यादा रुपये नहीं लिए क्योंकि विजय मिश्रा मौसा जी बात किये रहें , लोहा हाट में भगवान जी के जीप को शुभ माना जाता था,पर कब कौन किसके लिए शुभ हो जाएं और कौन कब किसके लिए अशुभ हो जाएं , कौन जानता है , बड़े भाई उस वक्त गोलू दीपक झा के छत पर विनोद भईया के बेटी रीतू को दी हुई बीस रुपया मांग रहे थे कि हम आज बहन से मिलने जाएंगे, तभी अचानक गंगाराम की नज़र जीप पर तो पड़ी ही पड़ी पर पिता जो साईकिल से गये रहे , वह साईकिल जीप के ऊपर रहा उसका नज़र साईकिल पर पड़ा और वह खुश होकर आया कि बहन आ गयी , जैसे ही जीप के पास से रोने की आवाज़ आयी रोशन दिल से टूट पड़ा , यहां तक की बहन को बाड़ी में ही धूल कंकड़ के पास ही रख दिया गया , ललन काका जानते हुए भी बिना बताएं दादी को मोटरसाइकिल पर बैठाकर लाएं, आते ही दादी घर परिवार के साथ रोने लगी, अंतिम संस्कार के यात्रा में ललन काका उसे कंधे पर रखकर ब्रह्मा स्थान के ठीक सामना सामनी वाले आम के बग़ीचे जो उसकी माँ अपनी ज़ेवर सब बंधक में लगाकर सुटू काका से खरीदें रहें, उस आम बाग़ान के प्रवेश द्वार पर मालदह आम के पास तनु की लाश को रख दिया , भाई गंगाराम अपनी बहन को बार बार देखता रहा , जहाँ से खून चढ़ाया गया रहा , वह चींटी लगा रहा उसे वह बार बार साफ करता रहा , अंतिम संस्कार में अपने घर से सिर्फ बड़े भाई ही आया रहा , सभी गंगाराम से पूछा कहां अंतिम संस्कार किया जाएं , तो भाई गंगाराम दिगम्बर भईया और बैजू चाचा के बग़ीचे के कोने वाले स्थान को उपयुक्त माना और वहीं तनु बहन को गंगाराम अग्निदान देकर दाह संस्कार किया , और ब्रह्मा स्थान के पोखर तालाब में ही स्नान करते हुए घर आएं, दाह संस्कार वाले गंगाराम उस स्थान को उपयुक्त इसलिए माना , क्योंकि जब एक साथ ही बीस आम के पेड़ लगाया गया रहा , सब पेड़ बड़े हो गए पर उस कोने वाला पेड़ बढ़ ही नहीं रहा था , जिसके चलते फिर से दो साल पहले दुर्गेश चाचा के और अपने पिता के साथ गंगाराम मिथिलांचल नर्सरी से तीन आम के पेड़ लाया रहा , दो बाड़ी में और एक पेड़ आम बाग़ान में लगाया , पर बहन की मृत्यु के बाद वह कोने वाला पेड़ भी और जो नया लगाया गया रहा वह भी सुख पड़ा , यहां तक कि जिस पेड़ के लकड़ी से जलाया गया रहा वह आम के पेड़ आज तक रोता हुआ महसूस करता है वह पेड़ भी एक कोने में था पर वह पेड़ गुणों से भरपूर था आम बड़े छोटा होता था पर वह मिठास की क्या बताऊं, उस बग़ीचे के सबसे लंबे पेड़ भी वही थे , पर अपने बहन तनु के न रहने पर भाई गंगाराम रक्षाबंधन पर अपने कलाई को खाली ही रखतें हैं , जबकि जो जो बहन पहले राखी बांधती वह आज भी भेजती है पर गंगाराम वह राखी पुस्तकों में लगा लेते पर खुद नहीं पहनते , और न ही भरदुतिया के पर्व मनाते , चार साल बाद गंगाराम की चाची ,राखी ,आनंद वही अंशू , रूपम , आनंदनी ,की माँ , अरूण चाचा के जीवनसाथी सुधा भी दिल्ली में ही दुनिया छोड़कर चली गई, उस वक़्त गंगाराम कोलकाता में टिकियापाड़ा श्री नेहरू शिक्षा सदन, हावड़ा हिन्दी हाई स्कूल के बाद, घुसड़ी हनुमान जुट मिल हिन्दी हाई स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ता रहा , उसके बाद से चाचा के लड़का – लड़की गाँव पर रहने लगे , गंगाराम पेड़ पौधे लगाने के शौक़ीन थे साथ साथ राहुल, राजन, बहन तनु भी अपने अपने बाड़ी में ही बाड़ी बनाकर पेड़ पौधे लगातें और कहते ये मेरा कोलम है , मैथिली में बाग़ बग़ीचा को कोलम कहा जाता है, भले आज वहां वह कुछ पेड़ है कुछ पक्के घर बनने के कारण नहीं है , पर वह पर आज भी जिंदा है जो आंखों में हमेशा बसा हुआ है , बहन की मृत्यु के बाद हम तीनों भाइयों माँ पापा के साथ दो हज़ार ग्यारह से पश्चिम बंगाल हावड़ा के फकीर बगान पीलखाना में छोटा घर फिर फूल बाबू चाचा यहां , फिर बामनगाछी दिलीप दत्तो बाड़ी झील रोड़ , उसके बाद कमलेश अंक्ल के यहां , फिर शिशु विद्यापीठ के पास वेलगछिया रोड़ में दो तल्ला दो हज़ार चौदह में , फिर दीपक भईया झील रोड़ के बाद 51/9 कुमार पाड़ा लेन लिलुआ सुभाष दा बाड़ी नीचे फिर ऊपर उसके बाद बंटी भईया मामा यहां वेलगछिया रोड़ सुभाष भईया पास के बाद अभी मीरपाड़ा रोड़ आशीर्वाद भवन लिलुआ में रहकर बहन की याद करते हुए ज़िन्दगी की सफ़र कर रहे हैं गंगाराम, कोलकाता में स्थान दिलाने में , काली भईया , राजू चाचा पापा के मित्र, पापा के मामा सब बहुत योगदान दिए, प्रकाश भईया , मंटू भईया भी अपने साड़ी फैक्टरी से साड़ी के धागा काटने का काम दिए , उन लोगों का योगदान से ही गंगाराम आगे बढ़ रहा है ,चाची की मृत्यु के बाद दो तीन साल बाद राखी बहन की शादी रोशन से रामनगर में हो गई, उस वक्त गंगाराम बारहवीं ,कला से सलकिया विक्रम विद्यालय से पढ़ता रहा , राहुल हावड़ा जनता आदर्श विद्यालय से दसवीं पास किया, अमीर हसन सकुर अहमद कॉलेज, वाणिज्य से ग्यारहवीं कक्षा तक पढ़ा , उसके बाद अपनी माँ की बड़ी दीदी बरहारा वाली दीदी के बेटा आशीष मामा के कारखानों मुंबई में काम करके जीवन यापन करने लगा , अपना मामा संजय मुंबई में ड्यूटी के दौरान जान गंवाए रहें, और एक मामा बिकन को किसी से मतलब ही नहीं , एक बार तनु बहन दुर्गा पूजा समय में कोलकाता अपने भाई राजन और माँ के साथ पिता जी के पास आया रहा कुछ दिन बड़ा बाज़ार में उसके बाद राजन व तनु अपने गांव के तरफ से चाचा और नानी गांव के तरफ से नाना, क्योंकि माँ की छोटी बुआ के पति भविन्द्र फूफा के पास बेहरा कालीघाट में रहने लगे, भाई राजन और बहन तनु की फोटो आज भी है एक साथ , और एक फोटो में माँ और पापा है , एक ही महीना में भविन्द्र चाचा व नाना राजन व तनु को दोस्त दोस्त कहने लगे, वही तनु की छोटा भाई राजन नेहरू के बाद सलकिया विक्रम विद्यालय में नौवीं , आनंद आठवीं में पढ़ता है, इस साल दो हजार बीस में हुए चारों भाइयों के जनेऊ व दादी की एकादशी यज्ञ से एक दिन पहले कुमरम दिन पाँच मार्च को अपने आम के बग़ीचे में जाकर गंगाराम अपनी बहन तनु को याद करके रोये , फिर नमन करके घर वापस आ गए , उससे एक दिन पहले वाली रात में जब बलिदान के लिए परीक्षा नहीं लेता रहा तो गंगाराम अपनी बहन तनु , चाची सुधा और अपने बाबा स्वर्गीय श्री केदार नाथ को याद किए , तभी ही छागल परीक्षा लिया, इस जनेऊ में गंगाराम का आचार्य मंगनू चाचा , गुरु पीसा भोगेन्द्र ,दादी माँ बाल ली , राहुल का आचार्य भविन्द्र नाना वही चाचा , गुरु दिल्ली से आएं कुमर छोटा नाना , कपसिया वाली मौसी बाल ली, राजन का आचार्य श्रीष्टु अपने ही पिता , गुरु राखी की ससुर , निर्मल दीदी केश ली , और आनंद का आचार्य अपने ही पिता गंगाराम का चाचा अरुण , गुरु राखी बहन की पति रोशन जीजा , नानी कुमदिन देवी बाल ली , दादी की आचार्य गंगाराम के गुरु , और गुरु रहें आनंद के गुरु इस तरह जनेऊ का कार्यक्रम हुआ , दादी की यज्ञ में नारियल न होने के कारण बड़े भाई मुकेश के सहयोग से बाँस लगाकर नारियल तोड़ा यह नारियल का पेड़ भी बंगाल का ही है जब एक बार माँ गंगाराम और राहुल साथ कोलकाता गये रहे बड़ा बाज़ार घर के बग़ल में एक बंगाली कन्हैया जी रहते थे वही दो नारियल के पेड़ दिए रहें एक तो छोटा में ही सुख गए और एक आज भी हरा भरा है , यज्ञ के दौरान सब सोया पर गंगाराम दादी की यज्ञ के अंत तक जगा रहा , फिर चाचा साथ गाय लाने विनोद भईया पास गया और लाया प्रकृति भी अपनी आशीर्वाद वर्षा के माध्यम से वर्षायी , दस मार्च को होली का पर्व भी रहा , इस जनेऊ में कोलकाता लिलुआ से बलिया वाला संजय अंक्ल और आंटी भी आयी रही उन्हें भी खेत , आम के बग़ीचे दिखाने ले गए , इसी सब दुख के कारण गंगाराम विगत तीन वर्षों से 11 व 12 वीं कक्षा के विज्ञान व वाणिज्य के छात्र-छात्राओं को हिन्दी विषय व कला विभाग के समस्त विषयों को निःशुल्क पढ़ाते आ रहे हैं ,इस सेवा के लिए 2020 में साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली से बृहस्पति सम्मान, राष्ट्रीय अग्रसर हिन्दी साहित्य मंच से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन साहित्य सम्मान , प्रतिध्वनि साहित्य से प्रतिध्वनि आदर्श शिक्षक सम्मान से सम्मानित हुए , संग – संग 31 वीं बंगाल बटालियन एनसीसी फोर्ट विलियम कोलकाता-बी
,कम्पनी -5, पंजीकृत संख्या – WB17SDA112047, चंदन शिक्षा संस्थान , अपने गुरु अमिताभ सिंह बच्चन सर की सेवा करते हुए विश्व साहित्य संस्थान के एक रचनाकार , कलकत्ता विश्वविद्यालय , सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, श्री शिक्षायतन कॉलेज , दमदम सरोजिनी नायडू कॉलेज फॉर वुमेन, (2020) 74 वें स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर बंगवासी मॉर्निंग कॉलेज के द्वारा की गई हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता में उच्च अंक पाने व अपनी रचनाओं के लिए प्रमाण पत्र हासिल किए, नरसिंहा दत्त कॉलेज सेंट जॉन एम्बुलेंस , प्राथमिक उपचार , द भारत स्काउट और गाइड ,पूर्व रेलवे हावड़ा जिला वेरियांग स्काउट और गुलमर्ग गाइड बामनगाछी समूह , रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी राष्ट्रीय सेवा योजना ,ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा , महिला सुरक्षा संगठन बंगाल, बिहार युवा विकास मंच मधुबनी जिला उप मीडिया प्रभारी, ब्रिगेड ऑफ एक्स कैडेट्स , ( बीओसी ) पश्चिम बंगाल और सिक्किम, कोलकाता एन.एन.बी एंड जी .एस संस्था राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंक़लाब न्यूज़ मुंबई, पश्चिम बंगाल राज्य स्तरीय पत्रकार होकर वह तनु की भाई गंगाराम साहित्य सेवा के साथ साथ लोकसेवा करते आ रहें हैं , और अपनी बहन की पुण्यतिथि पर हर एक वर्ष उसकी छवि व चाची की छवि को याद करते हुए आँसू के साथ एक नव रचना कर बैठते हैं, अमर है वह भाई बहन और अमर है यह बहन से आख़िरी बात कहानी ।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
मो :-6290640716