*बहती हुई नदी का पानी, क्षण-भर कब रुक पाया है (हिंदी गजल)*
बहती हुई नदी का पानी, क्षण-भर कब रुक पाया है (हिंदी गजल)
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1)
बहती हुई नदी का पानी, क्षण-भर कब रुक पाया है
रूप बदलती रहती पल-पल, नदिया अपनी काया है
2)
नया कैलेंडर वर्ष बाद फिर, फिंक जाता है कूड़े में
बहुत क्रूर है काल देर तक, इसने किसको गाया है
3)
चालाकी से नाम लिखाते, इतिहासों में जो अपना
पोल खुली तो मजा उन्हें भी, सब ने खूब चखाया है
4)
प्रथम वर्ष की वर्षगॉंठ तो, मन जाती है सबकी ही
जन्मशती का उत्सव किसका, जग ने कहो मनाया है
5)
पढ़ना-लिखना बिटिया रानी, ऊॅंचे शिखरों पर चढ़ना
नए दौर ने नभ को छूने, उड़ना तुम्हें सिखाया है
6)
लड़के बेचारे अटके हैं, नंबर दो पर ही कब के
चारों ओर लड़कियों ने अब, देखो इन्हे हराया है
7)
उलट-फेर किस्मत की देखो, किसने कब यह सोचा था
पहले सास सताती थी अब, दोष बहू पर आया है
8)
कठपुतली-सी चली जिंदगी, मन की सब कब हो पाई
प्रबल हमेशा रहा भाग्य ही, जिसने हमें नचाया है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451