****बहता मन****
****बहता मन****
यदा कदा किंचित भावनाओं
में यूँ बह जाता ये मन है
अनूठी, दिलकश प्रीत सी
उदित मनभावन ये तरंग है।
कभी मन मे हर्ष प्रसन्नता
कभी पलती चित्त में भिन्नता
सरसराती समीर सा यूँ ही
मदमस्त बहता संग संग है
कभी अनुभूति कुछ खास सी
कहीं दुख तो कभी विषाद की
उल्लास, उमंग , स्फूर्ति लिये
अन्तर्मन इक तृष्णा जिये
घनघोर स्याह पयोद बरसे
कभी वो मद्धम चपला चमके
निर्झर सा शीतल बनके यूँ
बहता सतत ही झर झर है
मन स्वरूप नही स्थाई
चंचल चपल देता दिखलाई
कभी नेह, प्रेम से है घिरा
कहीं दुख दर्द ,उद्वेग धरा
बाँध सके ना मन को कोई
अधर मुस्काते अखियाँ रोई
बहती प्रेम बयार हृदय में
कभी संदेह अपार मन में
स्वच्छंद बयार अत्यंत गहरी
मानो प्रेम की इक नगरी
प्रफुल्लित हो तब खिलता कभी
दर्द, पीड़ा से बिखरता कहीं
जलधारा सा बहता जाये
पवन सा सतत चलता जाये
हर्षित आनंदित हो कहीं रमे
दुख दर्द में कभी ठहर थमे
मन की गति संगति ही निराली
मानो नीर भरी इक प्याली
जो मन को वश में कर पाया
जीवन उसका धन्य कहलाया।
✍️” कविता चौहान”
इंदौर (म.प्र)
स्वरचित एवं मौलिक