बहता पानी
मेरा न रंग रूप आकार है
स्वादहीन रंगहीन हूं
पर सबकी जिंदगानी
में पानी….
करता हूं लंबी यात्रा
समंदर से चलता हूं,
हवा के सहारे बादल बन
यहां से वहां दौड़ता हूं,
देख देख होती है सबको हरानी
मैं पानी..
पीकर जीव मुझे अपना प्यास बुझाते हैं
दुख होता तब जब बेबजह गिराते हैं,
ऐसा न करो बर्बाद मुझे प्राणी
वर्ना मिट जायेगी तुम्हारी निशानी
मैं पानी….
जहां कमी है मेरी
वहां लोग लड़ते हैं,
लंबी लाइन लगा के
पानी पानी चीखते हैं,
घर घर मेरी कहानी
मैं पानी….
जिस रंग के बर्तन में रख दो
उस बर्तन जैसा दिखता हूं,
गंदा हो जाऊंगा एक जगह रहने पर
इसीलिए बहता हूं
लगे धूप जो मुझ पर वाष्प बन उड़ जानी
मैं पानी…..
देह और देवालय में मेरा है काम
जीवन देता हूं सबको नही करता हूं गुमान,
मेरे बिना सब मर जानी
मैं पानी…. ।
मेरी समरूपता से जनजीवन होता है
नियंत्रण ,
मेरी अधिकता से बाढ को मिलता है
आमंत्रण,
मैं हीं जीवन, मैं हीं मृत्यु
मेरी कमी से है परेशानी
मैं पानी…..