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28 Sep 2024 · 1 min read

बहता जल कल कल कल…!

बहता जल,
कल कल कल।

प्रश्न कठिन,
मुश्किल हल।

कीचड़ में,
देख कमल।

पांव बचा,
है दलदल।

आँख लड़ी,
तो हलचल।

रोज नहा,
तन मल मल।

खींच लहू,
है निर्बल।

मंज़िल तक,
चलता चल।

तन्हाई हर,
इक पल।

इश्क ज़हर,
ओ पागल।

जाने कौन,
क्या हो कल।

बाबू जी,
चल चल चल।

नींद कहाँ
बिन मखमल।

छम छम छम,
पग पायल।

जान बचा,
चाल बदल।

छोड़ो भी,
अब छल बल।

महनत का,
मीठा फल।

ले डुबकी,
गंगाजल।

देर हुई,
चल घर चल।

खूब कही,
आज ग़ज़ल।

पंकज “परिंदा”

1 Like · 36 Views
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