#बस_एक_ही_सवाल-
#बस_एक_ही_सवाल-
■ “जश्न में हर्ज क्या……?”
★ सोचिएगा आप भी!
★ समर्थन नहीं तो विरोध भी क्यों?
【प्रणय प्रभात】
एक चिंतनशील इंसान और प्रयोगधर्मी लेखक के तौर पर दिन भर कुछ न कुछ सूझता है। जो साझा करने योग्य लगता है आपके समक्ष प्रस्तुत कर देता हूँ। विचारों के इसी क्रम में एक दिन ख़ुद ही ख़ुद से सवाल कर बैठा। मज़े की बात यह रही कि हाथों-हाथ जवाब भी मिल गया। जवाब भी कामचलाऊ या दिल-बहलाऊ नहीं बल्कि तार्किक। सवाल था कि दिसम्बर और जनवरी के बीच महज एक दिन का फ़ासला होने के बाद भी साल भर की दूरी क्यों? दिमाग़ में अनायास उपजे सवाल का जवाब अगले ही पल दिल से निकला। दिसम्बर और जनवरी के बीच बेहद नज़दीकी के बावजूद लम्बी दूरी की वजह है दोनों महीनों का ठंडापन। क्योंकि नज़दीकी ठंडेपन नहीं गर्मजोशी से बढ़ती है। चाहे बीच में कितनी ही दूरी क्यों न हो। बस, इसी दिलचस्प से सवाल-जवाब के बीच लगा कि दिसम्बर के साथ 2022 के ख़ात्मे और जनवरी के साथ 2023 के आगाज़ पर भी कुछ लिखा जाए। जिसे लेकर विचारधारा के नाम पर हर साल बावेला मचता है। लोग दो धड़ों में ऐसे बँटे नज़र आते हैं, मानो उनके बीच की चैत वाली गर्मजोशी पर पूस वाला ठंडापन हावी हो चुका हो। भारतीय और आंग्ल नववर्ष के नाम पर वही तर्क-वितर्क, जो केवल मनमुटाव का सबब बनें। उस मनमुटाव का, जिसकी आज किसी को भी ज़रूरत नहीं।
सर्वविदित व शाश्वत सच है कि जीवन का सरोकार आने वाले कल या पल से नहीं। बस उस एक पल से है, जो क्षणभंगुर है व अगले पल से पहले समाप्त हो जाना है। इस सच से वाकिफ़ होने के बाद क्या ऐसा नहीं माना जाना चाहिए कि ख़ुशी के छोटे-छोटे पलों का लुत्फ़ गर्मजोशी से लिया जाए। अपने लिए नहीं तो उन अपनो के लिए जो बड़ी ख़ुशी का इंतज़ार करने के बजाय छोटी-मोटी खुशियों में बड़ी खुशी को महसूस कर लेते हैं। अपनी परंपराओं व मान्यताओं का अनुपालन निस्संदेह हमारा कर्त्तव्य है, मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपनी सोच जबरन दूसरों पर थोपें। प्रेरक, उत्प्रेरक बनने में कोई बुराई नहीं, किंतु अपनी सोच को थोपना किसी भी नज़रिए से उचित नहीं माना जा सकता। वो भी कथित विकासशीलता के उस दौर में, जब दुनिया के देशों और लोगों की तरह संस्कृतियों व सभ्यताओं के बीच की दूरी लगातार घटती जा रही है। यदि हम औरों की संस्कृति के ख़िलाफ़ कट्टरतावादी दृष्टिकोण रखते हैं तो हमे औरों से भी ऐसे ही रुख की उम्मीद करनी चाहिए। जो नि:संदेह अपने लिए रूखा लगेगा। प्रसंग में है अंग्रेज़ी कैलेंडर का नया साल, जो हमारी दहलीज़ पर दस्तक देने जा रहा है। एक पारंपरिक भारतीय के रूप में नव संवत की चिरकालिक मान्यता का प्रबल पक्षधर होने के बाद भी मैं उस नए साल का विरोधी नहीं, जिसे विदेशी बता कर महज एकाध दिन बखेड़ा खड़ा करने वालों की तादाद अच्छी-ख़ासी है। जो दो-चार दिन हो-हल्ला मचा कर मोहल्ला जगाने का उपक्रम हर साल करते हैं और तमाम मोर्चों पर अपसंस्कृति के खरपतवार को साल भर शिद्दत से सींचते दिखाई देते हैं।
आवश्यक नहीं कि आप मेरी सोच से सहमत हों। ऐसे में आपकी सोच से मेरी असहमति क्यों नहीं हो सकती? मेरा अपना मत है कि
31 दिसम्बर और 01 जनवरी के बीच कोई ऐसा अंतर नहीं जो किसी महोत्सव का विषय बने। वहीं ऐसा एतराज भी नहीं कि कोई उत्सव क्यों मनाया जाए? मेरा मत है कि दोनों तारीख़ों के बीच घर की दीवार पर टंगे कैलेंडर के बदलाव की ज़िम्मेदारी है। सामान्यतः दोनों दो अलग-अलग पन्नों पर अंकित बस दो तारीखें ही हैं। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा है कि जीवन के तमाम वार्षिक निबंधों में से एक का उपसंहार लिखा जा रहा है तो दूसरे की प्रस्तावना। वस्तुतः नए साल के पहले दिन ऐसा कुछ नहीं होना, जो अंतिम दिन नहीं हुआ होगा। इसी तरह आज कुछ ऐसा नहीं हो सकता, जिसकी पुनरावृत्ति कल न हो। यहाँ तारीख़, महीने और साल से इतर महत्व जीवन के हर दिन की अपनी महत्ता का है। हर वो चमकदार दिन जो एक काली रात के बाद आता है। ऐसे में एक प्रश्न यह भी है कि जश्न हर दिन का क्यों न हो? वो भी यह सोच कर, कि मौत ने हमे एक दिन की मोहलत दी है। कुछ बेहतर और सार्थक करने के लिए। उतार-चढ़ाव हर दिन की यात्रा के मोड़ पर हैं जो सदैव रहेंगे। ऊंचाई पर ले जाने वाले रास्ते कभी सीधे होते भी नहीं। आड़ी-तिरछी रेखाएं जीवन की परिचायक हैं और सीधी मौत की प्रतीक। दिन अच्छा हो या बुरा जीवन की अमानत है। जो अच्छा होगा उल्लास देगा। बुरा होगा तो सीख दे जाएगा आगत को अच्छा बनाने के लिए। अभिप्रायः बस इतना सा है कि जो उत्साह सब एक दिन की विदाई और दूसरे दिन की अगवानी को लेकर दिखाने जा रहे हैं, वो हर नए दिन के स्वागत में भी दिखाएं। क्योंकि आने वाला हर दिन 01 जनवरी की तरह आपके जीवन का एक अमूल्य दिवस है। बहरहाल, एक और कैलेंडर का परिवर्तन उन सभी के लिए शुभ हो, जिनका काम-धाम उसी की तारीख़ों और महीनों पर निर्भर है और आगे भी रहना है। बहरहाल, एक सलाह और। जश्न के जोश में होश न गंवाए। मास्क लगाएं, सुरक्षित दूरी बनाए और आराम से जश्न मनाएं। अगर आपका मन चाहे तो। वो भी औरों को तकलीफ़ पहुंचाए बिना।
शेष अशेष।।