बस
शाख से गिरे पत्ते
अब तो बख्श दो
बेहतर नहीं तुमसे
रास्ते से हटकर
एक कोना बस
बाकी सब तुम्हारा
यकीं करो मेरा
फिर जींद नहीं हूँगा
एक कोना बस
तुम उड़ पाते हो
हवा के संग सब
एक कोना बस
मेरे लिए आरक्षित
मैं स्थायी हूँ मगर
समवाय की आस लिए
एक कोना बस ।
– मोहित