बस यूं ही
बस यूं ही एक पिता
अपने बच्चों की तस्वीर ले के
बहल जाता है।
बस यूं ही एक पिता
उनकी गलती पे डांट के
खुद नहीं रोता।
बस यूं ही एक पिता
इंतजार नहीं करता
खुदके किसी दिवस का।
बस यूं ही एक पिता
अपनी मनपसन्द आइसक्रीम
नहीं खाता।
बस यूं ही एक पिता
हँसता है शाम को बच्चों के साथ
दिन भर की दुर्दशा के बाद भी।.
बस यूं ही एक पिता
शहर के बाहर जाकर भी
कहीं घूमता-फिरता नहीं अकेले।.
बस यूं ही एक पिता
कमतर पितृत्व को अपनी कोशिकाओं रखकर
इर्ष्या नहीं करता ममता से।
बस यूं ही एक पिता
लड़ लेता है अकेले पूरी दुनिया से
कई बार हो जाता है अकेला घर पर भी।
बस यूं ही एक पिता
पी लेता है शराब की आधी बोतल
अपने अकेलेपन से बोर होकर
बस यूं ही एक पिता
कहता नहीं कभी अपने मन की बात
कमज़ोर साबित नहीं होना चाहता
बस यूं ही एक पिता
पिसता है बहुत सी चक्कियों के बीच
खुद को बेहतर बनाने के लिए
बस यूं ही एक पिता
पता नहीं क्या-क्या कर गुजरता है
मुस्कुरा कर कहते हुए “बस यूं ही यार।”