बस यूं ही रहने दो
बस यूं ही रहने दो बिखरी हुई लटों को,
बस यूं ही रहने दो बिस्तर की सिलवटों को,
बस यूं ही रहने दो बर्तनों का ढेर,
बस यूं ही रहने दो कपड़ों का अंबार,
बस यूं ही रहने दो बिखरे हुए पन्नों को,
बस यूं ही रहने दो चीजों पर धूल का गुबार,
बस यूं ही रहने दो हाथों में चाय की प्याली,
बस यूं ही रहने दो सुबह की खिलती धूप,
हर रोज यह हाथों से फिसल जाती है,
सुबह की आपा – धापी में,
जीवन की भागा – दौड़ी में,
लोगों के रेले – पेले में,
आज के इस सन्नाटे में,
सबकुछ बस यूं ही रहने दो।