बस यूंही
बस यूंही कहकर वो आज हमें नजरअंदाज कर गए
मासूम से मेरे इस दिल पर वो गहरे से जख्म दे गए।
कुछ ऐसा वो हम पर अनजाने में सितम कर गए
हमारी हर उम्मीदों को वो आज ना-उम्मीद कर गए।
इन्तज़ार में उनके हम ने कई रातें गंवाई जाग कर
लेकिन दिल बहलाकर मेरा वो तो किनारा कर गए।
ख़ुशियों के रंग वो सारे के सारे अब फीके पड़ गए
आँखों में जो ख़्वाब संजोए थे वो सब अधूरे रह गए।
उसके एक जिक्र से ही चल पड़ती थी सांसें ये मेरी
पर किसी गैर की चाहत के रंगों में वो आज रंग गए।
जी रहे थे साथ गुज़ारे पलों को ही संजोकर के हम
लेकिन उन पलों की यादें भी अब तो नासूर बन गए।
आंखों को मेरी वो जफ़ा के अनगिनत आंसू दे गए
बेरुखी से अपनी वो मेरे अरमां को चुराकर चले गए।
बस यूंही कहकर वो आज हमें नजरअंदाज कर गए
मासूम से मेरे इस दिल पर वो गहरे से जख्म दे गए।
— सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार