बस यूँ ही
शरद पूनो को तेरा इंतज़ार था,
रात भर चांदनी में नहाते रहे।
वो मिल मुस्कुराने की तेरी अदा,
हम धोखा मुहब्बत में खाते रहे।
हुई जुदाई, बता क्या था मेरा कसूर
बनकर शम्मा ख़ुद ही को जलाते रहे।
लगने अपने से लगे अब तो दुश्मन सभी
दोस्त मेरे, दिल में खंजर घुसाते रहे।
इस क़दर अश्कों से हुई आंखें नम
आईने दिन ब दिन धुंधलाते रहे।
है अंधेर नगरी क्यूं दुनिया ख़ुदा
‘नीलम’ सपने ही आंखों से जाते रहे।
नीलम शर्मा ✍️