बस यूँही ।
कभी कभी ये आंखे खुद चलचित्र देख लेती है,
वो दिन थे जब रात मे अक्सर कहानियो से डर कर के सो लेते थे,
ये दिन है जहां डर और कहानीकार शर्म से छुप गये शायद।
निगाहें आज भी ढूंढे पुराने पगडंडीयो को,
पुरानी पीपल के निचे पुराने पाठशाला को,
पुराने दोस्तो के जैसे ये सब भी खो गये,
पुराने रास्ते मे अब सब चेहरे है अनजाने से,
पुराने रास्ते अब भी मगर लगते पहचाने से,
शायद अब भी वहाँ वो पुरानी पीपल है इसलिए ।
मंचन 22:11 ( 24/12/18)