*बस याद ही रह जाएगी*
क्या पता आंखों से कब बह जाएगी।
याद हैं, बस याद ही रह जाएगी।।
क्यूँ गुमाँ करता हैं इन महलों पे तू।
हैं इमारत रेत की ढह जाएगी।।
रुख हवा का एक सा रहता नही।
क्या पता किस और ये बह जाएगी।।
आईना भी सच मेरा कहता नहीं।
दफ़्न हैं मुझमें दफ़्न रह जाएगी।।
इक मुक्कमल ख्वाब सी हैं ज़िंदगी।
ख्वाब थी बस ख्वाब ही रह जाएगी
आता किनारा देख कश्ती बेफ़िक्र।
छोड ना पतवार ये बह जाएगी।।
सुनील गुप्ता ‘धीर’