बस यही जिंदगी और यही मेरा पता
एक मैं और एक मेरा जीवन
जीवन में शामिल कुछ शब्द
शब्दों का साथ लिए कुछ दर्द
कभी लगता हैं मैं पाठक हूं
तो कभी कवित्री
जाने क्यों कुछ लोग मुझे लेखिका कहते हैं
सच कहूं में लिखना जानता ही नहीं
ना ही आज तक सोचा कि लिखना हैं
बस जो साथ चलता हैं
वो शब्दों में पीरों देती हूं
मेरे सपनों के पीछे मेरा घर हैं
जिसकी दरों दीवारों को
सहलाती रहती हूं
ताकि एहसास हो की इस घर में कोई रहता हैं
और चांद के अंधेरें मेरा पता
कभी कभी अच्छा लगता हैं
जब जिंदगी खानाबदोश सी लगती हैं
बैठ सड़कों पे अंजान से लोगो से
बस यूं ही बतियाता रहती हूं
कभी मुस्कराना तो कभी हंसना
और कभी बेसाख्ता हंसना
बस यही जिंदगी और यही मेरा पता..
दीपाली कालरा