— बस मुस्कुराना पड़ता है —
न हो चाहत
तब भी
कभी कभी
सब कुछ भूल कर
मुस्कुराना पड़ता है
ऐ जिन्दगी
रोजाना फिर से
नया गम
मुझ को
भूलाना पड़ता है
कब तक चलेगा
यह सिलसिला
कि मैं गम से
निजात पा जाऊँगा
रोके हुए
आंसुओं के
सैलाब को कब
बहाऊंगा ?
यह मुस्कान
बस एक दिखावे को
सब के सामने लानी
पड़ती है
ऐ जिन्दगी तेरे
दिए हुए गम
को ढक कर
लोगों को हसीं
दिखानी पड़ती है
कर के नित नया
बहाना, फिर से
मुस्कुराना पड़ता है
डगमगाते हुए
पगों को..लड़खड़ाने
से पहले संभालना
ही पड़ता है
ऐ जिन्दगी
तू सदा खुश नजर आये
इस लिए
मुझ को सब के सामने
ऐसे ही मुस्कुराना पड़ता है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ