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15 Feb 2024 · 1 min read

“बस तेरे खातिर”

लोग कहते रहे मुझे पत्थर दिल,
पिघला के पत्थर शीशा बनाएं बस तेरे खातिर।

तेरी हँसी पे कुर्बां हुआ ये दिल,
खुद की हर खुशी,हर गम भुलाएं बस तेरे खातिर।

छोड़ हुकूमत नाचे हम तेरे हर एक इशारे पर,
बने कठपुतली डोर तेरे हवाले बस तेरे खातिर।

खुद से ज्यादा ऐतबार कर ना पाएं किसी पे भी,
अपनी जाँ तक किए तेरे ही खाते बस तेरे खातिर।

सिर झुका झोली फैलाना हमने तो सीखा ही ना था,
किए मिन्नत, मांगे दुआएं बस तेरे खातिर।

मेरी जाँ ये हक है तुझे,इनकार कर दे तू मुझे,
तेरा हर फैसला सिर आंखों हमारे बस तेरे खातिर।

न हो कभी शक तुम्हें हमारे इस वफा पर,
खुद में रोएं, खुद को ही हँसाएं बस तेरे खातिर।

तेरे इश्क ने तो पागल कर ही डाला था हमें,
पर तुझे ज़रा – सा कम चाहे बस तेरे खातिर।

रहे जहां तू रहे खुश,नज़रें न नम हो कभी तेरी,
दिए खुदा को यही सदाएं, बस तेरे खातिर।

उम्मीदें तो न किए, पर अरमानों का क्या करें..?
इन्हें जलाएं और बुझाएं बस तेरे खातिर।।

ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)

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