बस गया भूतों का डेरा
जब से कलयुग ने घेरा,
डिजिटल का हुआ सवेरा,
मोबाइल ने रुख मोड़ा,
बस गया भूतों का डेरा।
तारे चमकते थे आसमान में,
चमचमाहट नजर आती आधी रात में,
रात्रि भर थकते नहीं करते दीदार बस,
जागते ऐसे बस गया भूतों का डेरा।
ख्याल ना अपना ना ही औरों का,
नेटवर्क और मोबाइल की नयी दुनिया,
आकर्षित करता नये युग को, भूल जाते सदुपयोग,
जागते देर रात ऐसे बस गया भूतों का डेरा।
अब डरते होंगे भूत प्रेत मोबाइल की रोशनी से,
सोचते होंगे, कौन से नये बंधु धरा में आकर हैं बसे,
टस से मस तक नहीं होते जो भागते थे रात को डर कर,
जुगुनू की तरह चमकते ऐसे बस गया भूतों का डेरा।
रचनाकार
बुध्द प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।