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25 Nov 2018 · 1 min read

बस एक शब्द, माँ !

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* * * बस एक शब्द, माँ * * *

आसकिरण जन्मी शुभ-लाभ प्रथम बार मिले
शाला ऊंची प्रेम की घुटने कई-कई बार छिले
उर – अंचल बरसी सुगंध झूम – झूमके
भाग्यबली मन-उपवन सुनहरी संस्कार खिले
चलता-चलता पथिक ठहर जाए जहाँ
वहीं चरण पूजता लक्ष्य, हाँ – हाँ – हाँ . . .

वो पंछियों की पंगत घर लौटती सजन
हृदय की धड़कनें नित निज खोजतीं सजन
आशीष शीश धरके यूँ पूत चल दिए
आँखों की पुतलियाँ सब सहेजतीं वचन
बिन छत की दीवारें कहलाएं घर कहाँ
सिसकता है सूनापन साँ – साँ – साँ . . .

पाँव नीचे धरती सिर पर गगन तना
मेरे साथ – साथ चलता पेड़ इक घना
मैं मेरी मुझको अपने साथ ले चली
जीवन की धूप तीखी तीखी है रे मना
बरसती है आग मेरा बचपन गया कहाँ
गोद का झूला आँचल की छाँअ-छाँअ-छाँअ . . .

टकरा के पर्वतों से वो लौटती पवन
जाड़े के दिनों में आषाढ़ की तपन
वो त्रिभुवन की सत्ता अंगुली से थामना
हाथों के दिलासे होंठों की वो छुअन
स्मृतिवन में आती-जाती सब तितलियाँ
एक शब्द शेष रहा माँ – माँ – माँ . . . !

(अभी-अभी मैं ‘साहित्यपीडिया’ से जुड़ा हूँ; वहाँ एक प्रतियोगिता चल रही है । ‘माँ’ पर लिखी गई मेरी यह कविता किसी प्रतियोगिता में नहीं है ।)

वेदप्रकाश लाम्बा ९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
4 Likes · 5 Comments · 313 Views
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