✍️बस इतनी सी ख्वाईश✍️
✍️बस इतनी सी ख्वाईश✍️
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यहाँ तक
चलते चलते
कई पाँव
थक जाते है…!
बड़ा लंबा है
जिंदगी का
एक छोटा पड़ाव,
हम ढूँढ रहे बसर,
जिंदगी कहाँ
ठहरी होगी…?
क्या है जिंदगी..?
एक ख्वाईश
जिंदा रखने के होड़ में
कही बार
बेवजह…
मरना पड़ता है।
क्या है जिंदगी..?
अस्तित्व की
चली आ रही
इस दौड़ में,
अपने बुलंदी
के लिये
हर बार
जीतकर भी
बेमतलब…
हारना पड़ता है।।
दोस्त जिंदगी
ऐसी हो…!
उसके एक
पैर में चुभें
काँटे का दर्द..!
मेरे दूसरे पैर से
लहु बन…
छलक आये।
चल ए दोस्त..
इस पार
फ़लक में
गूँज रही
“कहकहा” को
उस छोर ज़मी
के ख़ामोश
बच्चो के ओठों पे
हलका सा
बिखेरा जाये।
बस इतनी सी
ख्वाईश…!
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✍️”अशांत”शेखर✍️
09/06/2022