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3 Oct 2021 · 1 min read

बस ! अब रुखसत करो मुझे …

बस ! अब रुखसत करो मुझे ,
यूं रोकर न परेशान करो मुझे ।

यह आंसुओं का सैलाब क्यों,
और दिल में इतना गम क्यों ?

अरे ? यह बेताबी किसलिए ,
ये तड़प यह बेचैनी किसलिए ?

मैं समझ नहीं पाई रही हूं तुम्हें,
वैसे मैं समझ ही कहां पाई तुम्हें।

जब जिंदा थी तब भी परेशा थे ,
अब भी परेशा,तुम चाहते क्या थे?

तुम रहना चाहते थे अपने में तन्हा,
जा रही हूं मैं अब रहो न तुम तन्हा ।

आखिर किस बात का मलाल है ,
ये बदला हुआ तुम्हारा क्यों हाल है ?

चलो उठो ! मेरे पहलू से मुझे सोने दो ,
एक हसीं ख्वाब में मुझे अब खोने दो ।

मुझे मेरा मेहबूब ए खुदा लेने आ रहा है ,
मगर तुम्हारा गम मेरी राहें रोक रहा है ।

यह गम जो अब फिजूल है मेरे लिए ,
तुम्हारी आहें भी फिजूल है मेरे लिए।

तुम्हें चाहिए थी आजादी मिल गई न !
अब मुझे भी दो आजादी ठीक है ना ।

यह बंधन था बेमानी सा ,बेमतलब सा ,
समाज ने बांधा था जैसे एक फंदा सा ।

वो फंदा अब टूट चुका है देख लो तुम ,
यह बंधन भी टूट चुका है आजाद हो तुम ।

कहती हूं तुमसे अब और देर न करो ,
उठो ! जल्दी से मुझे रुखसत करो ।

Language: Hindi
3 Likes · 16 Comments · 380 Views
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