बस ! अब रुखसत करो मुझे …
बस ! अब रुखसत करो मुझे ,
यूं रोकर न परेशान करो मुझे ।
यह आंसुओं का सैलाब क्यों,
और दिल में इतना गम क्यों ?
अरे ? यह बेताबी किसलिए ,
ये तड़प यह बेचैनी किसलिए ?
मैं समझ नहीं पाई रही हूं तुम्हें,
वैसे मैं समझ ही कहां पाई तुम्हें।
जब जिंदा थी तब भी परेशा थे ,
अब भी परेशा,तुम चाहते क्या थे?
तुम रहना चाहते थे अपने में तन्हा,
जा रही हूं मैं अब रहो न तुम तन्हा ।
आखिर किस बात का मलाल है ,
ये बदला हुआ तुम्हारा क्यों हाल है ?
चलो उठो ! मेरे पहलू से मुझे सोने दो ,
एक हसीं ख्वाब में मुझे अब खोने दो ।
मुझे मेरा मेहबूब ए खुदा लेने आ रहा है ,
मगर तुम्हारा गम मेरी राहें रोक रहा है ।
यह गम जो अब फिजूल है मेरे लिए ,
तुम्हारी आहें भी फिजूल है मेरे लिए।
तुम्हें चाहिए थी आजादी मिल गई न !
अब मुझे भी दो आजादी ठीक है ना ।
यह बंधन था बेमानी सा ,बेमतलब सा ,
समाज ने बांधा था जैसे एक फंदा सा ।
वो फंदा अब टूट चुका है देख लो तुम ,
यह बंधन भी टूट चुका है आजाद हो तुम ।
कहती हूं तुमसे अब और देर न करो ,
उठो ! जल्दी से मुझे रुखसत करो ।