बस्ता
वो जो मुझ से कभी छूटा नहीं
वो जो मेरे साथ बचपन से रहा
मेरे अध्ययन के सफर के साथी
मेरे शून्य से शिखर के दर्शक
तु नये नये रूपो में मुझ से जुड़ा रहा
मेरे साथ ही सफर करता रहा
कभी मेरी पुस्तको को सम्भाला
कभी मेरे कपड़ो को सम्भाला
कभी मेरे सपनो को सम्भाला
स्कूल के पहले दिन से
कालेज के आखिरी दिन तक
तुम साथ रहे
तुम पास रहे
फिर शहर में भी साथ ही आऐ
पहली जाब के इन्टरव्यू में साथ रहे
मेरी फाइलो को तुम सम्भाला
भरी बरसात में
तेज धूप में
तत
तू कितना सच्चा है
तू मेरा बस्ता है
तू कल भी साथ था मेरे
तू आज भी साथ है मेरे
सुशील मिश्रा ( क्षितिज राज)