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7 Jul 2018 · 1 min read

बसन्त

मधु गंध बहे गाये मलंग ,
प्रिय लागे मुझको ऋतु बसंत |

फूली सरसों पीली -पीली , धानी -धानी भाये धरती |
मनहर कुसुमोंसे भरी -भरी , लहराये गाये ये धरती |
कुहके कोयल मन में उमंग प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |

अमराई गली -गली महके,रुनझुन पायल अंगना छनके |
चौराहों पर फागुन आये , गोरी गाये कंगना खनके |
आनंद प्रेम रस का संगम, प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |

चहुँ ओर उडे बासन्ती रंग ,चहुँ ओर उठे भीनी सुगंध |
बागों में बगराया बसंत ,यह देख नयन हो गये दंग |
छूटा तरकष से फिर अनंग , प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |

मधु गंध बहे—————————————————
प्रिय लागे मोहे————————————————-
मंजूषा श्रीवास्तव

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