बसंत
मधु गंध बहे गाये मलंग ,
प्रिय लागे मुझको ऋतु बसंत |
फूली सरसों पीली -पीली , धानी -धानी भाये धरती |
मनहर कुसुमोंसे भरी -भरी , लहराये गाये ये धरती |
कुहके कोयल मन में उमंग प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |
अमराई गली -गली महके,रुनझुन पायल अंगना छनके |
चौराहों पर फागुन आये , गोरी गाये कंगना खनके |
आनंद प्रेम रस का संगम, प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |
चहुँ ओर उडे बासन्ती रंग ,चहुँ ओर उठे भीनी सुगंध |
बागों में बगराया बसंत ,यह देख नयन हो गये दंग |
छूटा तरकष से फिर अनंग , प्रिय लागे मोहे ऋतु बसंत |
मधु गंध बहे—————————————————
प्रिय लागे मोहे————————————————-
मंजूषा श्रीवास्तव