बसंत
आज जीवन का
एक और बसंत कट गया…
ये पतझड़ क्यूँ नहीं कटता?
और तुम क्यूँ नहीं आते
मेरे बालों में मोगरा सजाने?
तुम कहीं हो भी या नहीं?
और सुनो…
प्रेम बनकर आना…
मत आना कोई नया दुख बनकर
यूँ भी…
दुखों की घर की खेती है
सो तुम्हारा कंधा भी भीगेगा…
सुनो शिकायत मत करना
अच्छा सुनो…
बस प्रेम करना
~ रिया ‘प्रहेलिका’