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13 Feb 2019 · 1 min read

बसंत पर मुक्तक

???
पात पुराने बिछुड़े डाली- डाली
नव पल्लवों ने बिखेरी हरियाली
हुई पद आहट ऋतुराज वसंत की
कुहू कुहू बोले कोयलिया काली ।
???
छायी खेतों में सरसों पीत
प्रकृति भी सुना रही नव गीत
नव रंग रूप सजा चहुंओर
ऋतु बसंत का है यह संगीत ।
???
सरसों टेसू पलाश फुलवारी
महका ये जग महकी है क्यारी
हुआ आज मुग्ध मगन मन मितवा
महकी बयार बसंत की न्यारी।
???
प्रकृति छलकाती रूप गगरिया
धरती ने ओढ़ी हरी चुनरिया
टांका पीली सरसों का गोटा
आया बसंत हमारी नगरिया।
???
हुए ज्यों वीणा के तार झंकृत
प्रकृति हुई सुर ध्वनि से अलंकृत
नदियाँ कल-कल गा रही रागिनी
होता सृष्टि का कण-कण उपकृत।
???
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
1303 Views
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