बसंत पंचमी का आगाज और जीवन में उल्लास
✍️बसंतपंचमी का आगाज और जीवन में उल्लास!
ऋतु बसंत है प्रकृति में,
सब ऋतुओं का राजा।
हुलसित है तन मन,
हर्षित सकल समाजा।।
लो! शिशिर को हरा,
मैं बसंत फिर आया।
प्रकृति है बदली,
मानुष मन मुदित मुस्काया।।
त्रिकालज्ञा,शारदे का,
प्राकट्य हुआ है आज।
वीणावादिनी हंस पर,
माँ! सरस्वती रही विराज।।
पीली सरसों के खेत से,
सखियां दें आवाज।
चलो हिलमिल झूमें सभी,
बसंतोत्सव है आज।।
यौवन में इठलाती,
सरसों झूमे खड़ी खड़ी।
क्यों कर किए हाथ पीले,
बाबुल से मिल रो पड़ी।।
बौर अमवा पे छाई,
फूल औ कलियां महके बाग।
कुहुक रही कोयल,
मतवाली ने छेड़ दिया है राग।।
कामदेव भी मधु मास की,
देख बासंती ठंड।
कामना ये ही करें,
गृहस्थ के फीके ना हों रंग।।
विद्यादेवी,बुद्धिदात्री,
वरदायिनी, दीजे ये वरदान।
ज्ञान की गंगा बहती रहे,
घटे कभी ना मान।।
सभी सफल हों जीवन में,
खुलें उन्नति के द्वार।
माँ सरस्वती के आशीर्वाद से,
हो जाए नैया पार।।
होली की शुरुआत,
पूर्णिमा को रोप दिया है दंड।
बृज में रसिया रस घोरें,
बाजत ढ़ोल, चंग, मृदंग।।
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान